जैन धर्म में आराधना पूजा धर्म पाठ धार्मिक किर्या ओर छरी पालक पेदल संघ का विशेष महत्व हे थांदला की धर्म नगरी पुण्य धरा पर एक बार फिर इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने का सौभाग्य यहां के

 झाबुआ( थांदला)  माणक लाल जैन।                  जैन  धर्म में आराधना पूजा धर्म पाठ धार्मिक किर्या ओर छरी पालक पेदल संघ का विशेष महत्व हे थांदला की धर्म नगरी पुण्य धरा पर एक बार फिर इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जा








ने का सौभाग्य यहां के सु श्रावक मुल चंद जी लुणावत ने अपनी पत्नी श्रीमती विमला देवी की स्मृति में  परिवार ने भावना की हे  पिछले 100 साल के बाद गुरुदेव मद राजेंद्र सूरिश्वर वह जिनेशवर परमात्मा की कृपा से आचार्य श्री मद विजय हेमेंद्र सुरीश्वर जी आचार्य श्री मद विजय ॠषभ चंद्र सुरीश्वर जी के शिष्य रत्न मुनि श्री चंद्रेश विजय जी महाराज सा मुनी श्री वैराग्य विजय  मुनी श्री जनक विजय जी साध्वी माता सौम्य दर्शिता श्री जी आदि थाना 5 के सानिध्य में  3 मार्च 22 को थांदला से चलकर पालक पेदल संघ सुबह निकालेगा जो 5 दिन में मोहन खेडा तीर्थ पर समापन होगा इसके पूर्व 28 फरवरी को मुनी चंद्रेश विजय जी का संस्कार स्कूल प्रवेश हुआ वहां नवकारसी हुई जो बेंड बाजों के साथ नगर में खुली कर यात्रा के लाभार्थी परिवार के घर गहूली के बाद  मंदिर पहुंचा जहां प्रवचन हुआ 1 मार्च को सुबह प्रवचन होकर शाम को चोवीसी लाभार्थी परिवार के घर होगी 2 मार्च को सुबह नवकारसी के बाद नगर में बेंड बाजों के साथ वीशाल जुलूस निकाला जाएगा फिर समाज का भोजन प्रसादी होगी 3 मार्च को यात्रा प्रारम्भ होकर पेटलावद रोड पर पहला बावड़ी रात्री विश्राम होगा 4 मार्च को पेटलावद मंडी विश्राम होगा 5 मार्च बोलासा घाट में विश्राम होगा 6 मार्च को झकनावदा विश्राम होगा इसकेे बाद मोहनखेड़ा यात्रा पूर्ण होगी यात्रा को लेकर आज नगर में वरघोड़ा निकाला गया जिसमें हाथी घोड़े बग्गी रथ में लाभार्थी परिवार के श्रावक श्रावीकाओ व मुनि श्री चंद्रेश विजय जी महाराज थाना 3 साध्वी माता सौम्य दर्शिता श्री जी थाना 5 के आशीर्वाद मार्गदर्शन में वरघोड़ा जैन मंदिर  पहुंचा जहां बहार से आए मेहमान व मोहनखेड़ा पेढ़ी के पदाधिकारियों का लाभार्थी परिवार व श्री संघ ने बहुमान किया तरी पालक पेदल संघ के लाभार्थी परिवार को भी बहुमान किया  इस अवसर पर दिक्षा लेने वाली बहन का बहुमान भी श्री संघ की महीलाओं ने की बाद मे प्रवचन हुए ओर फिर सकल श्री संघ का स्वामी वात्सल्य हुआ