प्रदेश में जड़े जमा रहा मानव तस्कर गिरोह...

         लगातार गायब हो रही नाबालिग लड़कियां                         प्रदेश में जड़े जमा रहा मानव तस्कर    गिरोह...पुलिस अपहरण का केस दर्ज कर कार्रवाई तो करती है, लापता में कुछ ही मिल पाती हैं अपनों से | उदयसिंह राजपूत इंदौर। कोर्ट के निर्देश के बाद गुमशुदगी और लापता होने के मामलों में पुलिस अपहरण के केस दर्ज करती है। जानकारी नहीं होने पर अज्ञात के खिलाफ केस कायम किया जाता है और फिर शुरू होती है उन लापता की तलाश, लेकिन क्या परिजनों और पुलिस के द्वारा की जाने वाली ये तलाश पुरी हो पाती है? कुछ मामलों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश में इसका जवाब होगा नहीं, क्योंकि अधिकांश में लापता या गुमशुदा मिल ही नहीं पाता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर लापता या गायब अथवा यूं कहे कि ये लोग (जिनमें अधिकांश नाबालिग लड़कियां) जाते कहां है? इंदौर और भोपाल जैसे बड़े शहरों में लगातार नाबालिग लड़कियों के लापता होने से शक गहराता जा रहा है कि कहीं प्रदेश में मानव तस्कर गिरोह तो सक्रिय नहीं है। या फिर ये प्रदेश में जड़े जमा रहा है। छह माह की रिपोर्ट में कुछ चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। गुमशुदगी और अपहरण के अनेक ऐसे मामले हैं, जिनमें नाबालिग लडकियों के लापता होने के बाद उनका कुछ पता नहीं चल सका है, जो पलिस और शासन के लिए भी गंभीर विषय है, क्योंकि लडकियों के अपहरण होने से लगता है कि मध्यप्रदेश के लगभग हर शहर तक हूमन ट्रैफिकिंग माफिया की पहुंच हो गई है। यानि मानव तस्कर गिरोह अपनी जड़े जमा रहा है। भोपाल और इंदौर जैसे शहर में मानव तस्करों का गिरोह मजबती से जड़ें जमा चुका है। जनवरी से जन तक मात्र 6 माह में इंदौर से 349 तो भोपाल से 256 लडकियां लापता हैं। इनमें से ज्यादातर 14 से 17 साल के बीच हैं। यह अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड आंकड़ा है। प्रदेश के हर शहर में हर साल औसतन 300 परिवार ऐसी घटनाओं का शिकार हो रहे हैं। अकेले भोपाल से 2018 में 386 नाबालिग लड़कियां गायब हुई थीं। 2019 में जनवरी से जून तक 256 नाबालिग लड़कियां गायब हो गईं हैं। यानी इस साल यह आंकड़ा 400 के पार जा सकता है। बीते 7 साल में किसी एक साल और छह माह में गायब होने वाली लड़कियों की यह संख्या सर्वाधिक है। यह बेचैन कर देने वाला खुलासा 2012 से 2019 (जून माह तक) के हर जिले से गायब हुए बच्चों के आंकड़ों के विश्लेषण में हुआ है।                                                              दूसरे शहर में भी पुलिस मुख्यालय के अपराध अनुसंधान विभाग से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में सबसे ज्यादा नाबालिग लड़कियां शहरी इलाकों से गायब हो रही हैं। इंदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर समेत रीवा, सागर, सतना और उज्जैन जैसे शहरों में भी हर साल गायब होने वाली नाबालिग लड़कियों की संख्या बढ़ रही है। ग्रामीण आबादी वाले जिलों में लड़कियों के गायब होने की संख्या या तो कम हो रही है या स्थिर है। 2018 में इंदौर से 593 लड़कियां गायब हुईं। वहीं 2019 में जनवरी से जून तक 349 लड़कियां गायब हो गईं, जो किसी एक साल में व छह माह में प्रदेश के किसी भी जिले से गायब होने वाली लड़कियों की सर्वाधिक संख्या है।                दिल्ली में हुआ था खुलासा पिछले साल दिल्ली में पकड़े गए एक ह्यूमन ट्रैफिकिंग माफिया कनेक्शन ने अपने बयान में बताया था कि अब वो लड़कियों का अपहरण नहीं करते बल्कि पूरा प्लान बनाकर उनके दिल और दिमाग पर कब्जा करते हैं। सोशल मीडिया के जरिए इस तरह की लड़कियों से दोस्ती बढ़ाते हैं फिर उसे महंगे मोबाइल और चीजों के लिए क्रेजी बनाते हैं। एक मोड़ ऐसा आता है जब लड़की इस तरह की लाइफ के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाती है और बस तभी घर छोड़कर आने को बोल देते हैं। कुछ पैसा खर्च होता है परंतु यह अपहरण से ज्यादा अच्छा है क्योंकि लड़की खुशी खुशी साथ बैठकर आती है।                                                                      पुलिस पर आरोप कितने सही? ऐसे मामलों में पुलिस पर आरोप लगते हैं कि वो कुछ नहीं करती। यह भी आरोप है कि पुलिस शिकायतकर्ता माता-पिता या परिवारजनों को हतोत्साहित करने की कोशिश करती है। पुलिस एक खास ट्रिक का यूज करते हुए। शिकायतकर्ताओं को बताती है कि तुम्हारी बेटी चरित्र हीन है। वो किसी के साथ भाग गई है। तुम उसे संस्कार नहीं दे पाए। बुरी संगत में होगी, बदचलन लड़कियां ऐसा ही करती हैं। यह सबकुछ पुलिस इसलिए करतीं हैं ताकि शिकायतकर्ता उन पर गुमशुदा लड़की तो तलाशने का दवाब ना बनाएं।