पहली बार सनसनीखेज खुलासा...(आईडीए का इंजीनियरिंग प्रभाग अब अवैध कमाई की तकनीक का बना विशेषज्ञ... की खास चमचों की महत्वपूर्ण पदों पर अवैध नियुक्ति और कर डाला भारी भ्रष्टाचार।) मामला इस प्रभाग में कार्यपालन यंत्रियों यानी एक्जीक्यूटिव इंजीनियरों की फर्जी नियुक्तियों का है। इस जबरदस्त घोटाले में बिना किसी पद के और बिना किसी प्रावधान के "अपनों" को एक्जीक्यूटिव इंजीनियर जैसे बड़े पदों पर नियुक्तियां, वाहन, बड़े बंगले सहित दे दी गई... और किसी को नहीं हुई “कानोंकान खबर"।आखिर क्या है मामला.............धांधली शुरू हुई थी तब, जब दशकों पूर्व तात्कालिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए "प्रोफार्मा-ई' के अन्तर्गत इंजीनियरों के “ऐसे पद” रखे गए जो प्रोजेक्ट “विशेष” के लिए थे और प्रोजेक्ट के समाप्त होते ही “स्वतः समाप्त हो जाने वाले थे। सन 2009 में, एक बेखौफ धोखाधड़ी शुरू हुई जब 9 कार्यपालन यंत्रियों को इन्हीं पदों पर नियुक्ति दे दी गई। और इन “स्वतः समाप्त होने वाले पदों को चुपचाप संविदा पदों" का रूप दे दिया गया, जबकि आईडीए में संविदा पदों की कोई व्यवस्था ही नहीं थी। ये पद पुराने इंजीनियरों के प्रोजेक्ट समाप्ति के साथ स्वतः समाप्त होने वाले पद थे और वे प्रोजेक्ट न जाने कब के समाप्त हो भी चुके हैं।इन्हीं फर्जी पदों पर आसीन एक इंजीनियर महोदय ने हद कर दी जब वे भोपाल से अपना प्रमोशन ऑर्डर भी सेटिंग के द्वारा ले आए। और एसी यानी सुप्रीटेंडेंट इंजीनियर बन बैठे। जिनका पद होना ही नहीं था उन्हें “प्रमोशन" और गाड़ी-बंगला भी, भई वाह! ऐसा आविष्कार आईडीए में ही संभव है। एक और धांधली......... एक महाभ्रष्ट, महाबदनाम इंजीनियर ने तो, जिनकी सीआर यानी “चरित्र रिपोर्ट" 80 प्रतिशत तक खराब रही है, भ्रष्टाचार के कारण। उन्होंने उसी भ्रष्टाचार का सहारा लेकर सेटिंग से अपनी पुरानी सीआर यानी चरित्र रिपोर्ट ही बदलवा डाली। उसे गायब करवा दिया गया और नई सीआर लिखवा ली गई। जिसमें यह सज्जन महा ईमानदार दिखाई दे रहे हैं। IDA की वर्तमान स्थिति............. यहां अब कामकाज कुछ नहीं होता पुराने प्रतिनियुक्ति वाले इंजीनियर्स तो बड़े ही मेहनती थे और उनमें काम करने की, कुछ कर दिखाने की, शहर को सुंदर बनाने की उत्सुकता भी थी। आज जो भी इंदौर दिख रहा है वह सब उन्हीं की योजनाओं का परिणाम है। ...परंतु अब के ये अवैध संविदा नियुक्ति के इंजीनियर हमेशा कार्यालय की घड़ी की ओर ही बस देखते रहते हैं। सदैव चमचों से घिरे बैठे ये लोग, फिजल कुर्सियां तोड़कर पांच बजते ही घर चले जाते हैं। इनमें ज्यादातर स्थानीय अर्थात यानी “लोकल है और उन नेताओं के खास पढे हैं जिन्होंने यह सब लीला रची। लिहाजा बाकी बेबस स्टॉफ शिकायत से भी डरता है और अब आराम से, सीधे लाखों का वेतन जेबों में जा रहा है बिना किसी रूकावट के। इन अवैध फर्जी इंजीनियरों से शहर को कितना बड़ा खतरा........इन फर्जी नियुक्ति के इंजीनियरों एक नया कारनामा कर दिया कि आरएमसी यानी रेडी मिक्स कांक्रीट प्लान्ट जो आईडीए के निर्माण में एक अनिवार्य शर्त होती है। इन इंजीनियरों ने अपने पसंदीदा ठेकेदारों की सुविधा के लिए आरएमसी की जगह हांडी मिक्सर, जो एक साधारण से मकान की छत डालने के काम आता है उसका प्रावधान कर दिया। आरएमसी प्लांट एक आटोमैटिक स्वचालित कंप्यूटराइज्ड प्लांट जिसके सीमेंट-रेती मिश्रण के अनुपात में धांधली नहीं हो सकती। किंतु इस हांडी मिक्सर में जो मात्र 10-20 हजार रुपए में मिलता । इसमें आप 1-4 के रेशो की जगह 1-12, 1-16, 1-20 जैसा चाहे इस्तेमाल कर सकते हैं और ऐसा किया भी गया जिसका सबूत है एमआर-4 की घटिया व उखड़ी बेतरतीब डिवाइडर वाल। आज भी यहां इस जगह पर एक हांडी मिक्सर पड़ा हुआ सड़ रहा है जिसका इसी डिवाइडर निर्माण में उपयोग किया गया था।यह इतना बड़ा मामला है की जिम्मेदारों के विरूद्ध तुरंत “एफआईआर दर्ज होना चाहिए थी। जिसकी जगह उन्हें उत्कृष्ट कार्य का पुरस्कार दे दिया गया। आरएमसी प्लांट की शर्ते बदलकर चहेतों ठेकेदारों को छूट देना एक नितांत गैरकानूनी कार्य था जिसके बदले उन्हें जेल जाना चाहिए थे। वे सब आरामदायक कुर्सियों पर आईडीए के बड़े से भवन में वातानुकूल कक्षों में आराम फरमा रहे हैं। अब सोचिए, जब धांधलियों की ऐसी उच्च स्तरीय सेटिंगे चलेंगी तो शहर का क्या होगा। कई स्कीमों पर कोर्ट में हार हो चुकी है, कई योजनाएं हास्यास्पद साबित हो चुकी है। 1 रुपए की जगह 10 रुपए का खर्चा करने बाद भी कोई सार नहीं निकलता। इस तरह आईडीए आज एक सफेद हाथी ही साबित हो रहा है जो हम इंदौर की जनता के खून पसीने की टैक्स से कमाई पर ऐश करके हमें ही पागल बना रहा है।
इंदौर के विकास को लगा धांधलियों का ग्रहण.............